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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाजी का फरमान नं. १ मालवा, लाहोर, दिल्ली, मुलतान, अजमेर आदि के मुत्सदियों को विदित हो कि हमारी कुल इच्छायें इसी बात के लिये हैं कि शुभाचरण किये जायें और हमारा श्रेष्ठ मनोरथ अपनी प्रजा के मन को प्रसन्न करने और उन्हें सुखी करने के लिये सदैव तत्पर है। इस कारण जब कभी हम किसी मत वा धर्म के ऐसे पुरुषों का जिक्र सुनते हैं जो अपना जीवन पवित्र व्यतीत करते हैं अपने समय को आत्मध्यान में लगाते हैं और जो केवल ईश्वर के चिन्तवन में लगे रहते हैं तो हम उनके पूजा की बाह्य रीति नहीं देखते हैं केवल उनके चित्त के अभिप्राय को विचार कर उनकी संगति के लिये हमें तीव्र अनुराग होता है और ऐसे काम करने की इच्छा होती है जो कि ईश्वर को पसंद हो, इस कारण जैनाचार्य हीरविजयसूरि और उनके शिष्य जो गुजरात में रहते हैं और हाल ही में यहां आये हैं उनके उग्रतप और असाधारण पवित्रता का वर्णन सुनकर हमने उनको दरबार में हाजिर होने का हुक्म दिया और वे आदर के स्थान को पाकर सम्मानित हुए, आपने अपने देश जाने के लिये विदा होने के समय निम्न लिखित प्रार्थना की कि यदि बादशाह अनाथों का सच्चा रक्षक है तो यह आज्ञा दे दे कि भादों मास के १२ दिनों में, जो पजोषण कहलाते हैं जिनको जैनी लोग विशेषकर पवित्र समझते हैं कोई भी मनुष्य उन नगरों में जीव न मारे जहां उनकी जाति रहती है तो इससे दुनियां में प्रशंसा होगी बहुत से जीव वध होजाने से बच जायेंगे और सरकार का यह उत्तम कार्य परमेश्वर को पसन्द होगा, जिन मनुष्यों ने यह प्रार्थना की है वे दूर देश से आये हुए हैं और उनकी इच्छा हमारे धर्म के प्रतिकूल नहीं है उन शुभ कार्यो के अनुकूल ही है, जिनका माननीय पवित्र मुसलमान ने उपदेश दिया For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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