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:: हीर गीति::
जय जय हीर ! जया शुभ सूदन ! जय सारद ! जयसूरे !। जय वीरेश्वर जिन पद चातक ! जय शरणीकृत सूरे ? ॥१|| हर मम सुखद ! विभो ! करुणा कर ! दैनिक कल्मष भारम् । मामनुकम्पय दीन मनाथं कुरु भवसागर पारम् ।। २ ॥ श्री गुरुदानपदाब्ज मधुव्रत ! दर्शय पद मभिरामम् । शासन नायक धर्म धुरन्धर ! पूरय मानस कामम् ।। ३ ।। अपराधम्मे विषहर ! परिहर वन्दे विमलं चरणम् । आत्माराम सुरमणे करुणा वरुणालय ! तवशरणम् ।। ४ ।। कुरु कुरु सदयं ममहृदि भगवन् ! गुरुवर ! हीर ! निवासम् । भक्त जन प्रिय ! नाथीनन्दन ! मामुद्धर निज दासम् ॥५॥ दूरं गमय दुराशयचेतो लधिमा हेत्वभिमानम् । दिशिदिश भातुतरा मिह भारत भावुक भासुर मानम् ॥ ६ ॥ जय जैनागम विपिन हरीश्वर ! हित मादिश शिवपन्थानम् । मानवता प्रतिकूल सुधारक ! कलयन्त्वथ मन्थानम् ॥ ७ ॥ जय जैनाजन ! शमथनिकेतन ! अपनय भवभयमोहम् । सूरि हिमाचल वन्दित ! नन्दित भव्यानन! तव दासोऽहम ॥ ८ ॥ इमां देव सुधां मत्वा भक्त्या गायाति यो नरः । तस्य सर्वार्थ संसिद्धि न्ददाति भगवान् गुरुः ॥६॥
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