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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्षाकाल की मेघ पंक्ति के समान है एवं भव भ्रमण रूप महा रोग से दुःखी जीवों के लिये परम औषधि की तरह है, अहिंसा समस्त व्रतों में भी मुकुट के समान है अतएव हे महीपते ? आप भी सर्व सुख जननी अहिंसा को स्वीकार करते हुए प्रजा से भी जीवों की रक्षा करवाते हुए अहिंसामय, नीति से राज्य का पालन करें और आपके दिल में कोई भी शंका हो तो पूछ कर समाधान कर दीजिये। जैन धर्म में दया को प्रधान पद दिया गया है ! सब धर्म इसी को अवलंबन करते हैं। दान, शील, तप भाव परोपकार इत्यादि शुभ क्रियायें होती हैं उन सबका मूल दया है । जैन धर्म में कहा है कि "धम्मस्स जणणी दया" धर्म की माता दया है। दया ही सब की जड़ है। लेकिन दया के स्वरूप को समझना चाहिये लोग दया दया पुकारते हैं । परन्तु दया क्या चीज है, अभी समझे ही नहीं। ___अहिंसा और दया में बहुत अन्तर है। किसी जीव को तकलीफ नहीं देना, मारना नहीं, सताना नहीं, उनके दिल में चोट पहुँचाना नहीं, यह अहिसा है। लेकिन इस अहिंसा का पालन कौन कर सकेगा ? जिसके हृदय में दया होगी वही, इसलिये दया, यह अन्तः करण के भावों नाम है । दुःखी को देखकर के अपने हृदय में दर्द होना यह दया है। अथवा मेरे इन शब्दों पर दूसरों को दुःख होगा ऐसा विचार होना उसी का नाम दया है।। दूसरी बात यह है कि इस में भी मुख्य करके निरपराधी जीवों की हिंसा का त्याग बताया है । इसलिये यह नहीं समझना चाहिये के , बिच्छू, सांप, शेर, खटमल जू आदि जीव हमारे अपराधी हैं और अपराधी समझ कर के उसको मार दिया जाय । खरी बात तो यह है कि संसार में कोई भी जीव मनुष्य का अपराधी नहीं है, सांप, बिच्छ शेर आदि जानवर तो खुद ही मनुष्य से इतने डरते हैं कि वह मनुष्य For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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