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करके सौभाग्य प्राप्त करले क्योंकि मैं तो मुस्लिम हूँ मेरे घर का खाना हिन्दू के नाते ये नहीं लेंगे अतः तेरे जो कुछ चाहिये वो लेजा कर अपने घर में उनके योग्य व्यवस्था कर, किसी भी प्रकार से तकलीफ न देना, बादशाह के इन व्यंगपूर्ण शब्दों से सारी सभा में हंसी के फव्वारे निकल पड़े।
अब बादशाह ने सूरिजी के रहन-सहन खान-पान और फकीरपणे के मर्म को समझना चाहा, इतने में मोदी नामक राजकर्मचारी ने निवेदन किया हुजूर ! इन महात्माओं के रहन सहन आदि जो हैं मैं कह देना चाहता हूँ अतः आप इजाजत बक्षावें, अकबर का आदेश पाते ही सच्ची हकीकत मोदी कहने लगा हे जहांपनाह ! ये महात्मा गंधार बन्दर से पांव पैदल चले आ रहे हैं, अपना जितना भी सामान है वह आपही आप उठाकर चलते हैं आप नंगे पांव एवं नंगे शिर हमेशां रहते हैं धोती इत्यादि कभी नहीं पहनते हैं, शिर और दाढी के समूचे बाल को हाथों हाथ उखाड़ कर फेंकते हैं, किसी तरह का तेल भी नहीं लगाते हैं और न कभी स्नान ही करते हैं, आप घर घर एक आध टुकड़ा मांग कर प्राण की रक्षा करते हैं, भीक्षा में सूखालूका
आदि का भी विचार नहीं करते अर्थात् जैसा मिले उससे ही संतोष कर लेते हैं विचार इतना ही करते है कि साधुओं के नियम के अनुसार होना चाहिये पानी केवल गर्म ही पीते हैं वो भी पानी सूर्यास्त के पहले ही एवं मादक चीजें कभी नहीं लेते हैं, रात में तो कतई कुछ भी मुंह में नहीं डालते हैं, तथा आप प्राणी मात्र के साथ वैर न रखकर मैत्री भाव ही रखते हैं आपको चाहें पूजे या गालियां दे मगर आपकी दृष्टि में दोनों समान ही हैं, किसी को न शाप देते हैं
और न वर ही, आप रात में पलंग आदि रुई के विस्तर पर शयन न करके शुद्ध ऊन के आसन पर ही नीचे सोते हैं, नींद भी परिमित ही लेते है शेष रात्रि प्रायः समाधि में ही व्यतीत होती है, धर्मोपदेश के अलावा अधिकतर मौन ही रहते हैं, आप में सबसे विशेष बात
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