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धाम पूर्वक अपने घर पहुँचा कर हीरसूरिजी की जीज्ञासा करने लगा, ऐसा मनोहर वातावरण सारे शहर में फैल जाने पर जैन जनता अकबर द्वारा किये हुए सत्कार पर खुशीयाली में अपूर्व महोत्सव करने लगी।
इधर अकबर चम्पाबाई की वैराग्यमय बातों पर मीमांसा करने लगा कि संसार क्षण भंगुर है इस क्षण भंगुर संसार से पार होना परमावश्यक है, किन्तु इस का साधन भूत हीरसूरि महाराज चम्पाबाई के कर्तव्य से प्रतीत होते हैं, इतर विद्वान या साधु आज तक नहीं मिला, क्योंकि अपनी सभा में हिन्दू मुसलमान खिस्तो पारसी आदि धर्मों के उपदेशक आये तथा उनके साथ परामर्श किया, किन्तु इस विषय से अपरिचित ही रहा, अब खुदा की कृपा से आशा है कि हीरसूरि महाराज को पाकर चम्पाबाई की तरह मुझे भी आत्मकल्याण करने में अवकाश मिलेगा, ऐसी प्रबल भावना से उत्कण्ठित हो कर सूरिजी के सम्बन्ध में अपने अधिकारियों में से जैनी थानसिंह सेठ को पूछा कि तुम्हारे गुरु श्री हीरसूरिजी अभी कहां है ? और उनके विषय में तुम क्या जानते हो, थानसिंह के उत्तर देने के पूर्व ही इतिमादखान ने सूरिजी के सम्बन्ध में पूर्व परिचय के कारण सब कुछ बातें कह सुनाई और यह भी कहा कि सूरिजी अधिकतर गुजरात प्रान्त में पर्यटन करते रहते हैं।।
___ उसे सुनते ही अकबर ने मेवाडा जाति के मोदी और कमाल नाक दो प्रधान कर्मचारियों को बुलाकर अहमदाबाद के तात्कालीन सुबेदार गवर्नर शाहबुद्दीन अहमदखां के नाम पर एक फरमान पत्र लिख कर गुजरात की तरफ रवाना किये । फरमान में बादशाह अकबर ने सुवेदार को यह लिखा था कि जैनाचार्य श्री हीरविजयसूरीजी को कोई तरह की तकलीफ न देते हुए बड़े सम्मान के साथ मेरे पास भेज दो। इस प्रकार के फरमान को ले जाकर शाहबुद्दीन को दिया। शाहबुद्दीन ने फरमान पाते ही अहमदाबाद के प्रधान प्रधान श्रावकों को अपने पास बुलाकर अकबर का फरमान पढ़कर सुनाया और
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