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कोशिश करूंगी और इसका ऐसा ही भाग्योदय होगा तो वह स्वयं ही गुरु चरणों में आ जायगा । इस प्रकार वचन सुनकर श्रीसंघ धन्य धन्य करता हुआ गुरुदेव की जय बोलता हुआ गुरुदेव के चरणों में जाकर के हीरजी को सब बातें कह सुनाई । अल्पकाल में ही गुरुदेव भी पृथ्वी मंडल को पावन करते हुए भव्य प्राणियों को सन्मार्ग के अनुयायी बनाने लगे।
इस मध्य में हीरजी के माता पिता ने सम्यक् प्रकार से धर्माराधनपूर्वक इस असार संसार से परलोक की महायात्रा कर के इस पालनपुर को अपने से शून्य बना दिया । इधर जनतागण लघु बालक हीरजी की अवस्था को देख कर मन में बड़े सन्तप्त होने लगे। हीरजी का तो कहना ही क्या था ? । कितने आपत्ति रूप बादल आये ? फिर बादल को ज्ञान रूप वायु से तितर-बितर करके अल्प समय में ही महाशोक से पृथक रह कर समय व्यतीत करने लगे। कुछ दिन के बाद हीरजी अपनी बहन से मिलने के लिये श्री अणहिलपुर पाटण गये। बहन भी अपने छोटे भाई को आये हुए देख कर अत्यन्त हर्ष में मग्न हो गई कुछ दिन के बाद अपने गांव जाने की आज्ञा मांगने पर बहन के अत्यन्त आग्रह से हीरजी और ठहर गये । एक दिन आप स्वेच्छापूर्वक श्री अणहिलपुर पाटण की शोभा देखते हुए घूमने लगे।
इधर मुनीश्वर गुणागार आचार्य देव श्री मद्विजयदान सूरीश्वर जी महाराज महीतल को पावन करते हुए बड़े धूमधामपूर्वक उसी शहर में पधारे। उस समय नगर के सब नर नारियां कुतूहलता पूर्वक स्तनन्धय बच्चे को भी छोड़ छोड़ कर के आप के दर्शनार्थ उपस्थित होने लगे । हीरजी भी अभूतपूर्व समारोह को देखने के लिये इस झुण्ड में शामिल हो गये । श्रीसंघ के आग्रह से गुरुदेव धर्म शाला में पहुंचने पर जिन प्रतिपादित धर्मोपदेश रूप सुधा की वर्षा करने लगे। जिसमें
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