________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
औदारिक शरीर को छोड़ कर देव लोक सिधार गये। केवल जैन संसार में ही नहीं बल्कि सारे जगत में शोक छा गया।
"गुरुदेव का चोमासा" पाटण ८ : खम्भात ७ : अहमदाबाद ६ : सिरोही २ : सांचोर २ : अभिरामबाद १ : आगरा २ : फतहपुर सीकरी १ : कुणगिरि १: महसाणा १ : सोजीतरा १ : आमोद १ : कावी १ : गंधार २: राधनपुर १: दिल्ली १ : लाहोर १ : मेड़ता १ : जालोर १: स्तम्भनतीथे १: मगशुदाबाद १ : इलाहाबाद १ : मथुरा १ : मालपुरा १ : नागोर १ : सूरत १ : आबू १: फलोधी १: राणकपुर १: नाडलाई १ : बोरसद १ : पालीताणा १ : उनादीव १ : दूसरे चौमासे में भादरवा शुद ११ को स्वर्गवासी हुए।
जगद् गुरुदेव के जीवन में उपरोक्त गांवों में चौमासा हुए ऐसा हीर सूरि रास द्वारा यहां उद्धृत किया है परन्तु इस में अनुक्रम से नहीं है । जैसे था वैसे ही मैंने लिखा है अतः पाठक ! दूसरा विचार न करें।
आपके समीपस्थ शिष्य मन्डल और श्रावक आदि मूर्छामय होकर फूट फूटकर रोने लगे। कुछ देर के बाद गुरु वचनामृत का स्मरण कर धीरता धारण करते हुए श्रावक गण संगठित होकर मृत शरीर को चंदनादि अनेक प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों से विलेपन कर एक सुन्दर विशाला नामक शिबिका में बैठा कर अग्नि संस्कार भूमि पर ले जाकर के चन्दन श्रीफल और गौ घृत से दाह क्रिया करने लगे । श्मशान भूमि से लौट करके स्नानोत्तर उपाश्रय आकर शान्ति का पाठ श्रवण पूर्वक अपने अपने घर चले गये।
सदनन्तर सब वापिस इकट्ठे होकर शासन नायक के स्वर्ग गमन का समाचार पत्र तथा संदेश द्वारा गामोगाम भेजे एवं विजयसेन
For Private and Personal Use Only