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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हर एक समय की बात है कि गुरुदेव असाध्य रोग रूपी काल के गाल में पड़ गये । उस समय विहार की शक्ति न होने पर दूसरा चौमासा भी यहीं करना पड़ा । गुरुदेव का स्वास्थ्य प्रतिकूल सुनकर जामनगर के जाम साहब का मुख्य वजीर अबजी भरणशाली सुख साता पूछने एवं वंदन के लिये आये थे उन्होंने गुरुदेव की सौनेया से नव अंग पूजा करके एक लाख का अंग लुछा किया। और अनेक याचक वर्गों दान देकर संतुष्ट किये । I पूज्यपाद जगद् गुरुदेव श्री मद्विजय हीर सूरिश्वरजी महाराज के उपदेश से तथा दिये गये मुहुर्त में जामनगर के शेठ (आदीश्वर भगवान के मन्दिर का शिलान्यास शेठ श्री अबजी भरणशाली के हाथ से आचार्य देव श्री मदविजय सेन सूरिजी महाराज की अध्यक्षता में किया गया और प्रतिष्ठा आप के पट्टधर आचार्य देव श्री मद्विजय देव सूरिजी महाराज के कर कमलों द्वारा की गई । अबजी भणशाली के वंशज नगर शेठ डाह्या कमलशी के परिवार में आज भी शेठ प्रजाराम भाई आदि विशाल कुटुम्ब विद्यमान है । जब उना में जगद् गुरु बीमारी में ग्रस्त हो गये थे तब भी औषध का सेवन नहीं किया । इन पर श्री संघ ने सत्याग्रह करके कहा कि अगर आप औषधि नहीं लेंगे तो हम लोग आज से अन्न पानी त्याग कर देंगे । और स्तनपान भी माता बच्चे को नहीं देगी । इस प्रकार अटल भक्ति संघ की देख कर गुरुदेव ने औषध सेवन करना स्वीकार किया । एक दिन का जिक्र है कि गोचरी में खीचड़ी लाये थे गुरुदेव ने नको उपयोग में ली । थोड़ी देर के बाद जब उस भक्त को मालूम पड़ती है कि खीचड़ी में खारा अधिक पड़ गया है दौड़ता हुआ उपाश्रय में आकर के कहता है कि गुरुदेव ! आज गलती हुई कि खोचड़ी For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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