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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ఓం Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जगत गुरुदेव की तीर्थ यात्रा व ७२ संघपति फतहपुर, पाटण, अहमदाबाद, मालवकेश, मेवाड़, मेवाति, मेड़ता, आगरा, जैसलमेर, विसलपुर, सिद्धपुर, महेसाणा, इडर, श्रहिमतनगर, साबली, कपडवंज, मातर, सोजीतरा, सुन्दर, नडियाद, वडनगर, डालूनि, कडी, भरुच, भगवा, रानेरा, घोघा, नवानगर, मांगरोल, वेलाउल, देवगिरी, विजापुरी, वइराट, नंदबार, सिरोही, महिमदाबाद, वडोदरा, बाजु, आमोद, सिनोर, जन्न, जम्बुसर, केरवाडु, मथुरा, गंधार, सूरत, कडा, धोलका, वीरमगाम, जूनागढ़, कालावाड, नवानगर, राधनपुर, नाडलाई, वागडिया, वडली, कुरणागिरि, प्रांतीज, महीअज, पेथापुरी, बोरसद, वाघट, मगशुदाबाद, कुंभलमेर, फलोधी, आबू, लाहोर, उनादीव, मालपुर । जब जगद्गुरु शत्रुंजय तीर्थ पर पधारे तब उपरोक्त नगरों के संघपति संघ लेकर के आये कुल तीन लाख मानव मेदिनी जमा हुई ७२ संघपति को संघमाल एक ही साथ पहनाई गई गांव की नामावली हीरसूरि रास के अनुसार लिखी गई है । तीर्थ पर शाह तेजपाल, शाह रामाजी, शाह कुबेरजी जसु ठकुर जी और शेठ मूला शाह इन पांचों धनिकों के द्वारा बनाये हुए पांच विशाल जैन मंदिरां की प्रतिष्ठा दो सहस्र मुनियों से समन्वित विबुध शिरोमणि जगद् गुरुदेव श्री मद्विजय हीर सूरिश्वरजी महाराज के कर कमलों द्वारा की गई। इस समय आई हुई जनता आनंद सागर में मीनवत् कल्लोलें करने लगी । इस समय एक डामुर नामक शेठ ने गुरुवंदन करके ७ हजार रुपये गुरुचरणों में भेंट कर वासक्षेप करवाया । रामजी २२ वर्ष की अवस्था में पति पत्नी ने, संघत्री ककुशेठ आदि ५३ व्यक्तियों के साथ ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया इस वक्त आये हुए भक्तों ने अपने अपने For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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