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जीवादिको तकलीफ होती है. तथा प्रतिमा प्रतिपन्न श्रावक होता है, वह काष्ठकी दंडीका रजोहरण रखता है. उसीका अलग पण भी वस्त्र विहीन रजोहरण मुनि रखनेसे होता है. इसी वास्ते वस्त्रयुक्त रजोहरण मुनियोंको रखनेका कल्प है. कदाच ऐसा कारण हो तो दोढ मास तक वस्त्र रहित भी रख सक्ते है.
(९) ,, अचित्त प्रतिबद्ध सुगंधको सुंघे. ३
(१०), पाणीके मार्गमें तथा कीचड-कर्दम के मार्गमै काष्ट, पत्थर तथा पाटों और उंचे चढने के लीये अवलंबन मुनि स्वयं करे ३
(११) एवं पाणीकी खाइ, नालों स्वयं करे. (१२) एवं छीका ढकण करे.
(१३) सूत, उन, सणादिकी रसी-दोरी करे, तथा चिलमिली आदि की दोरी बटे. ३
(१४) ,, सुइको घसे. (१५) कतरणी घसे. (१६) नखछेदणी घसे. (१७) कानसोधणी- मुनि आप स्वयं घसे, तीक्षण करे. ३
भावार्थ-भांगे, तूटे तथा हाथमें लगने से रक्त निकले तो अस्वाध्याय हो प्रमाद वडे गृहस्थोंको शंका इत्यादि दोष है.
( १८) ,, स्वरुप ही कठोर वचन, अमनोज्ञ वचनबोले. ३ (१९),, स्वल्प ही मृषावाद वचन बोले. ३ (२०), स्वल्प ही अदत्तादान ग्रहन करे. ३
(२१) ,, स्वल्प ही हाथ, पग, कान, आंख, नख, दांत, मुंह-शीतल पाणीसे तथा गरम पाणीसे एकवार धोवे वा वारवार धोवे. ३ १४