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(३९) बीश वर्षोंके दीक्षित साधुको सर्व सूत्रोंकी वाचना देना कल्पै. अर्थात् स्वसमय, परसमयके सर्व ज्ञान पठन पाठन करना कल्पै.
(४०) दश प्रकारकी वैयावञ्च करनेसे कर्मोकी निर्जरा और संसारका अन्त होता है. आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, तपस्वी, नवशिष्य, ग्लान मुनि, कुल, गण, संघ, स्वधर्मी इस दशोंकी वैयावश्च करता हुवा जीव संसारका अन्त और कर्मोकी निर्जरा कर अक्षय सुखको प्राप्त कर लेता है.
इति दशवां उद्देशा समाप्त.
इति श्री व्यवहारसूत्रका संक्षिप्त सार समाप्त