________________
अठारासे छत्तीसवां सूत्रतक कोई विशेष कारण होनेपर दुकानोंपर याचना करनी पड़ती है. शय्यातरके विभागमे दुकान है, जिसपर भागीदार क्रय विक्रय करता है, वह देवे तोभी मुनिको लेना नहीं कल्पै. कारण-शय्यातरका विभाग है, और शय्यातर देता हो, तोभी मुनिको लेना नहीं कल्पै. कारण शय्यातरकी वस्तु ग्रहन करनेसे आधाकर्मि आदि दोषोंका संभव होता है तथा मकान मीलने में भी मुश्केली होती है.
(३७) सत्त सत्तमिय भिक्षुप्रतिमा धारण करने वाले मुनियाँको ४९ अहोरात्र काल लगता है. और आहार पाणीकी ७-१४ २१-२८-३५-४२-४९-१९६ दात होती है. अर्थात् प्रथम सात दिन एकेक दात, दुजे सात दिन दो दो दात, तीजे सात दिन तीन तीन दात, चौथे सात दिन च्यार च्यार दात, पांचवे सात दिन पांच पांच दात, छटे सात दिन छे छे दात, सातवे सात दिन सात सात दात, दात-एक दफे अखंडित धारासे देवे, उसे दात कहते है. औरभी इस प्रतिमाका जैसा सूत्रोंमें कल्पमार्ग बतलाया है. उसको सम्यक प्रकारसे पालन करनेसे यावत् आज्ञाका आराधक होता है.
(३८) एवं अठ्ठ अमिय भिश्च प्रतिमाको ६४ दिन काल लगता है. अन्न पाणीकी २८८ दात, यावत् आज्ञाका आराधक होता है.
(३९) एवं नवनवमिय भिक्षु प्रतिमाको ८१ दिन, ४०५ आहार पाणीकी दात, यावत् आज्ञाका आराधक होता है.
(४०) एवं दश दशमिय भिक्षु प्रतिमाको १०० दिन ५५० • आहार पाणीकी दात. यावत् आज्ञाका आराधक होता है.
(४१) वजऋषभनाराच संहनन जघन्यसे दश पूर्व, उत्कृष्ट