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(6) नौवां उद्देशा.
मकानका दातार हो, उसे शय्यातर कहते है. उन्होंके घ. रका आहार पाणी साधवोंको लेना नहीं कल्पै. यहांपर शय्यातरकाही अधिकार कहते है.
१) शय्यातरके पाहुणा ( महेमान ) आया हो. उसको अपने घरकी अन्दर तथा वाडाकी अन्दर भोजन बनानेके लीये सामान दीया और कह दीया कि--आप भोजन करने पर बढ़ जावे वह हमको दे देना. उस भोजनकी अन्दरसे साधुको देवे तो साधुको लेना नहीं कल्पै. कारण-वह भोजन शय्यातरका है.
(२) सामान देने के बाद कह दीया कि-हम तो आपको दे चुके है. अब बढे हुवे भोजनको आपकी इच्छा हो वैसा करना. उस आहारसे मुनिको आहार देवे, तो मुनिको लेना कल्पै. का. रण-वह आहार उस पाहुणाकी मालिकीका हो गया है.
(३-४) एवं दो अलापक मकानसे बाहार बैठके भोजन क. रावे, उस अपेक्षाभी समझना.
(५-६-७-८) एवं च्यार सूत्र, शय्या तरकी दासी, पेसी कामकारी आदिका मकान की अन्दरका दो अलापक, और दो अलापक मकानके बाहारका.
भावार्थ-जहां शय्यातरका हक हो, वह भोजन मुमिकों लेना नहीं कल्पै. और शय्यातरका हक्क निकल गया हो, वह आहार मुनिको लेना कल्पै.
(९) शय्यातरके न्यातीले ( स्वजन ) एक मकानमें रहते हो, घरकी अन्दर एक चूलेपर :एक ही बरतनमें भोजन बनाके अपनी उपजीविका करते हो. उस आहारसे मुनिको आहार देवे तो मुनिको लेना नहीं कल्पै.