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वोंको वन्दन करना, अशनादि देना लेना। उस हालत में साधु, साध्वीयोंके साथ प्रत्यक्षमें संभोगका विसंभोग करे. अर्थात् अपने संभोगसे बहार कर देवे. प्रथम साध्वीयोंको बुलवाके कहे किहे आर्या ! तुमको दो तीन दफे मना करने पर भी तुम अपने अकृत्य कार्यको नहीं छोडती हो. इस वास्ते आज हम तुमारे साथ संभोगको विसंभोग करते हैं. उसपर साध्वी बोले कि मेने जो कार्य कीया है उसकी आलोचना करती हूं, फिर ऐसा कार्य न करुंगी. तो उसके साथ पर्वकी माफिक संभोग रखना कल्पै. अगर साध्वी अपनी भूलको स्वकार न करें, तो प्रत्यक्षमें ही विसंभोग कर देना चाहिये. ताके दुसरी साध्वीयोंको क्षोभ रहै.
(६) एवं साधु अकृत्य कार्य करे तो साध्वीयोंको प्रत्यक्षमें संभोगका विसंभोग करना नहीं कल्पै, परन्तु परोक्ष जैसे किसी साथ कहला देवे कि-अमुक अमुक कारणोंसे हम आपके साथ संभोग तोड देते है. अगर साधु अपनी भूलको स्वीकार करे, तो साञ्चीको साधुके साथ वन्दन व्यवहारादि संभोग रखना कल्पै. अगर साधु अपनी मूलको स्वीकार न करें, तो उसको परोक्षपणे संभोगका विसंभोग कर, अपने आचार्योपाध्याय मिलेन पर साची कह देवे कि-हे भगवन् ! अमुक साधुके साथ हमने अमुक कारणसे संभोगका विसंभोग कीया है,
(७) साधुवोंको अपने लीये किसी सावीको दीक्षा देना, शिक्षा देना, साथमें भोजन करना, साथमें रखना, नहीं कल्पै.
(८) अगर किप्ती देशमें मुनि उपदेशसे गृहस्थ दीक्षा लेता हो, परन्तु उसकी लडकी बाधा कर रही है कि--अगर दीक्षालो, तो मेंभी दीक्षा ले उंगी. परन्तु सावी वहांपर हाजर नहीं है. उस हालत में साधु उस पिताके साथमें लडकीको साब्बीयोंके लीये