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जाय, तो साथमे दुसरे दीक्षा लीथी, वह पुत्रसे दीक्षामें वृद्ध हो जावे. इस वास्ते आचार्य महाराज उस दीक्षित पिताको मधुर वचनोंसे समझावे हे आर्य ! अगर तुमारे पुत्रको वडी दीक्षा आवेगा, तो उसका गौरव तुमारेही लीये होगा-इत्यादि समझायके पुत्रको वडी दीक्षा दे सक्त है.
(१८) कोइ मुनि ज्ञानाभ्यासके लीये स्वगच्छको छोड़ अन्य गच्छमें जावे. अन्य गच्छमें जो रत्नत्रयादिसे वृद्ध साधु है, वह सामान्य ज्ञानवाला है. और लघु साधु है, वह अच्छे गी. तार्थ है. उन्होंके पास वह साधु ज्ञानाभ्यास कर रहा है उस स. मय कोइ अन्य साधर्मी साधु मिले, वह पूछते है कि-हे आर्य ! तुम किसके पास ज्ञानाभ्यास करते हो? उत्तरमें अभ्यासी साधु रत्नत्रयादिसे वृद्ध साधुर्वाका नाम बतलावे. तब पूछनेवाला कहे कि-इसे तो तुमारेही ज्ञान अच्छा है. तो तुम उन्होंके पास कैसे अभ्यास करते हो. तब अभ्यासक कहे कि-में ज्ञानाभ्यास तो अमुक मुनिके पास करता हूं, परन्तु जो महात्मा मुझे ज्ञान देता है, वह उन्ही रत्नत्रयादिसे वृद्ध की आज्ञासे देता है.
भावार्थ-वह निर्देशकोंका बहुमान करता हुवा अभ्यास करानेवाला महात्माकाभी विनय सहित बहुमान कीया है.
(१९) बहुतसे स्वधर्मी साधु एकत्र होके विचरनेकी इच्छा करे, परन्तु स्थविर महाराजको पूछे विना एकत्र हो विचरना नहीं कल्पै. अगर स्थविरोंकी आज्ञा विना एकत्र होके विचरे तो जितने दिन आज्ञा विना विचरे, उतने दिनोंका छेद तथा तप प्रायश्चित्त होता है. ___ भावार्थ-स्थविर लाभका कारण जाने तो आज्ञा दे, नहीं 'तो आज्ञा न देवे.
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