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(५८) दंडक उत्पन्न होनेके बाद स्यात साता, स्यात असाता वेदते है।.
(प्र.] हे भगवान् ! जीव परभवका आयुष्य बान्धते है वह क्या जानते हुवे बान्धते है या अमानते हुवे बान्धते है ?
(3) जीव पर भवका आयुष्य बान्धते है वह सब अनानप. से ही बान्धते है कारण आयुष्य कर्म छटे गुणस्थान तक बान्धता है और छटे गुणस्थानके जीव छमस्थ होते है । छमस्थोंका एसा उपयोग नहीं होता है कि इस टैममें हमारा आयुष्य बन्ध राहा है इस वास्ते सर्व जीव आयुष्य बान्धते है वह विने जाने ही बांधते है । एवं २४ दंडक यावत वैमानीक देव ।
(प्र०) हे भगवान् । जीव कर्कश वेदना कीस कारणसे बान्धते है ?
(उ०) प्रणातिपात यावत् मिथ्यादर्शन शल्य एवं अठारा पाप स्थान सेवन करनेसे जीव कर्कश वेदनी कर्म बान्धते है । वह वेदना उदय विपाक रस देती है तब स्कन्धकाचार्यके शिष्योंकों घाणीमें पीले गये स्कन्धक मुनिकि खाल उत्तारी गइ ऐसी असह्य वेदना होती है एवं यावत् २४ दंडक समझना।
(प्र०) हे भगवान् ! जीव अकर्कश वेदना केसे बांधते है ?
(उ०) अठारा पाप स्थानसे निवृति होनेसे अकर्कश वेदना बांधते है जिसका उदय विपाक रस: उदयमें होते है तब मरू. देवीके माफीक परम सात वेदनोंको भोगवते हुवे काल निर्गमन करे एवं अकर्कश वेदना एक मनुष्यके ही बांधती है शेष २३ दंडकोमें नहीं।