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(४४) (१०) मूल गुण प्रत्यारूपान कितने प्रकारके है ?
(उ.) मूल गुण प्रत्याख्यान दो प्रकारके है। बथा=(१) सर्व मूल प्रत्य० (१) देव मूल प्रत्या।
(प्र०) सर्व मूल गुण प्रत्याख्यान कितने प्रकारके है। (उ०) सर्व मूल गुण प्रत्या० पांच प्रकारके है बथा
(१) बस स्थावर , सुक्ष्म बादर, किसी प्रकारके जीवोंको स्वयं मारणा नहीं दुसरोंसे मरवाना भी नहीं। कोई जीवोंकों मारता हो उसे अच्छा भी नहीं समझना जेसे मनसे किसीका मृत्यु न चिंतबना, बचनसे किसीको मृत्यु एसा शब्द भी नहीं बोलना, कायासे किसीकों नहीं मारना अर्थात किसी भी जीवोंका बुरा नहीं चिंतवना, बचनसे किसीको बुरा नहीं बोलना, कायासे किसीका बुरा नहीं करना यह साधुवोंका पहला महाव्रत है । तीन करण तीन योगसे जीव हिंसा नहीं करना ।
(२) क्रोधसे, मानसे, मायासे, लोभसे, हास्यसे, भयसे, मृषाबाद नहीं बोलना, किसी दुसरोंसे नहीं बोलाना, कोई बोलता हो उसे अच्छा भी नहीं समझना, असत्य बोलनेका मन भी नहीं करना, बचनसे नहीं बोलना, कायासे इसार भी नहीं करना यह मुनियोंका दूसरा महाव्रत है।"
(३) ग्राममें नगरमें जंगलमें स्वल्प वस्तु, महान् वस्तु, अगु (छोटी तृणादि) स्थुल वस्तु स्वल्प मूलकि महान्मूल्यकि सचित जीव सहित शिष्यादि, अचित जीव रहित सुवर्णादि तथा वस्त्र पात्रादि इत्यादि कोई भी वस्तु विगर दातारकी दीय स्वयं नही