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है । सामग्री स्वरूप होनेसे स्वरूप पुद्गलोका आहार लेते है और चरम समय उत्थानादि सामग्री शीतल होनेसे मी स्वरूप आहार लेते है इसी माफोक नरकादि चौवीस दंडक उत्पन्न समय तथा चरम समय सल्प आहारी होते है ।
(प्र) हे भगवान् | लोकका क्या संस्थान है ? (3) अधोलोक ती पायाके संस्थान है । उ लोक उभी माद के संस्थान है तीर्यग लोक झालरीके संस्थान है। सम्पूर्ण लोक सुप्रतिष्ट अर्थात् तीन सरावला ( पासलीया ) के आकार पहला एक सशवला ऊंचा रखे उसपर दुसरा सरावला सीधा रखे तीसरा सरावल उसपर ऊंचा रखे अर्थात लोक निचेसे विस्तारवाला है विचमें संकुचित उपरसे - विस्तार (पांचमा देवलोक ) उसके उपर और संकुचित है विस्तार देखो शीघ्रबोध भाग १३वां । इस लोककि व्याख्या जिन अरिहंत केवल सर्वज्ञ भगवानूने करी है। जीवामीष व्याप्त लोक द्रव्यास्ति नयापेक्षा सास्वत है पर्यायास्ति नयापेक्षा असाहत है ।
(प्र०) हे भगवान् ! कोई श्रावक सामायिक कर सामायिकमें प्रवृति कर रहा है उस्कों क्या इरहि क्रिया लागे या पराय क्रिया लागे ?
( 30 ) सामायिक संयुक्त श्रावकों इर्यावहि क्रिया नहीं लागे किन्तु संपराय क्रिया लागे कारण क्रिया लगनेका कारण यह है ।
(१) वही कि केवल योगोंके प्रवृतिको लगती है जिन्होंके क्रोध मान माया लोभ मूउसे नष्ट हो गये है तथा उपशान्त हो गये है एसे जो वीतराग ११ - १२-१३ गुणस्थान वृति जीवों ही क्रिया लगती है ।