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थोकडा नम्बर ९ सूत्र श्री भगवतीजी शतक ७ उदेशा?
(भाहाराधिकार ) अनाहारीक नीव च्यार प्रकारके होते है ? यथा(१) सिद्ध भगवान सदैव अनाहारीक है। (२) चौदवे गुणस्थान अन्तर महुत अनाहारीक है।
(३) तेरवां गुणस्पान केवली समृदात करते तन संयम अनाहारीक होते है।
(४) पापत्र गमन करते वखत विग्रह गतिमें १-२-५ समय अनाहारीक रहेते है । इस योकडेमें परभव गमन समय अनाहारोक रहेते है उसी अपेक्षासे प्रश्न करेंगे और इसी अपेक्षासे उत्तर देंगे।
(घ) हे भगवान ? जीव कोनसे समय अनाहारीक होते है ! (उ) पहले समय म्यात माहारीक स्यात् अनाहारीक दुसरे समय स्यात आहारीक स्यात् अनाहारीक । तीसरे समय स्वात आहारीक स्यात् अनाहारीक । च.थे समय निश्मा आहारीक होते है। मावाना। जीव एक गतिका त्यागकर दुसरी गतिको गमन करता है। शरीर त्याग समय यहांपर अाहार (रोमाहार ) कर परभव गमन समश्रेणी कर वहां जाके आहार कर लेता है वास्ते स्यात आहारीक है। अगर मृत्यु समय यहां पर आहार नहीं करता। हुवा समुद्घातकर परमा गमन समणि कर वहांपर पहले समय आहार किया हो। वह जीव स्यात् अनाहारी कहा जाता है । दुपरे समय स्यात आहा-रीक जो जीव एक समयकि विग्रह गति करी हो वह दुसरे सम। उत्पन्न स्थान नाके आहार करता है वास्ते स्यात आहारीक त॥