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थोकडा नं. ८. . श्री भगवती शतक? उ०७
(गति) (५०) हे मगवान ! देवता मोटी ऋद्धि, क्रांती, ज्योती, बाला, सुख और महानुभाव अपने चवन कालको जानके सरमावे (बजा पामे) अरती करे स्वर काल तक आहार मी न ले और पीछे क्षुवा सहन न करता आहार को, शेष आयुष प्रक्षीन होनेपर मनुष्य या तिर्यच योनी में उत्पन्न होवे !
(उ०) देवता अपना चवन कालको नानेके पूर्वोक्त चिन्ता करे कारन देवता सम्बन्धी सुख छोडने कर मनुष्यादिकी अमुची पदार्थ वाली योनीमें उत्पन्न होना पडेगा और वहां वीर्य रौदका आहार लेना होगा इस वास्त सरमावे, घ्रगा करे, भरती वेदे फिर आयुष्य क्षय होनेपर मनुष्य या तियेचमें अवतरे । .. (प्र०) हे मावान । गर्ममें जीव उत्पन्न होता है वह क्या इन्द्रिय सहित या इन्द्रिय रहित उत्पन्न होता है।
(उ०) द्रव्येन्दिय (कान, नाक, नेत्र, रस, स्पर्श) अपेक्षा इन्द्रिय रहित उत्पन्न होता है कारन द्रव्येन्द्रिय शरीरसे संबन्ध रखती है इसलिये द्रव्येन्द्रिय रहित और भावेन्द्रिय सहित उत्पन्न होता है।
. (प्र०) जीव गर्ममें उत्पन्न होता है वह क्या शरीर सहित या शरीर रहित उत्पन्न होता है। ... (उ०) औदारिक, वैक्रिय, आहरिककी अपेक्षा शरीर रहित उत्पन्न होता है कारन यह तीनो शरीर उत्पन्न होनेके बाद होते