________________
उदिर सातमें भापुष्प और छे में बाप मोहनीय वजेके । सुक्ष्मः ५-६ कर्म उदिरे पांचमें आयुष्य मोहनिय वेदनिय वर्षक। यथाल्या० ५-२ दोय नाम गौत्र कर्मकि उंदिरणा करे तथा अनु. दिरणा मी है।
(२४) उपसंपझाण-सामा० सामायिक संयमको छोडे तो. उदोषस्थापनिय सुक्षम संपराय संयमासंयमि ( श्रावक ) तथा असं यममें जावे । छदो० छदोपस्थापनियों छोडे,तो. सामा० परि० सुक्ष्म० असंयम, संयमासंयममें जावे । परि० परिहार विशुद्धकों छोडे तो उदो० असंयम दो स्थानमें जावे । सुक्ष्म० सूक्ष्मसंपराछोडे तो सामा० छदो० यथा० सयममें जावे । यथा यथाख्या तकों छोंडके सुक्ष्म० असंयम और मोसमें जावे सर्व स्थान असंयम कहा है वह संघममें कालकर देवतावों में नाते है उस अपेक्षा समझना इतिद्वारम् ।
(२५) संज्ञा-सामा० उदो० परि० च्यारों संज्ञावाले होते है तथा संज्ञा रहित मी होते है शेष दोनों नो संज्ञा है।
(२३) माहार=नयमके च्यार संयम आहारीक है यथाख्यात स्पात् आहारीक स्यात् अनाहारीक ( चौदवागुग० )
(२७) मवसामा० छदो० परि० जघन्य एक उत्कृष्ट ८ भव करे अर्थात् सात देवके और आठ मनुष्यके एवं १९ मय कर मोक्ष जावे सूक्षम २० एक-उ० तीन भव करे । यक्ष० न० एक उ तीन तथा उसी. मवमें मोक्ष जावे ।.
। तिहारम् ।