________________
(१) स्थिति, ज० उ० कोडपूर्वका ।
(२) अनुबन्ध, ज० उ० पूर्वकोड । संज्ञी तीर्यच पांचेन्द्रिय जैसे रत्नप्रभा नरकमें उत्पन्न हुवे निसकि ऋद्धि तथा नौगमा कहा है इसी माफीक शार्करप्रभामें भी समझना परंतु शार्करप्रभामें स्थिति जघन्य एक सागरोपम उ. तीन सागरोपमकि है वास्ते नौगमामें स्थिति उपयोगसे कहेना शेषाधिकार रत्नप्रभावत् समझना । __भवापेक्षा ज० दोय उ० आठ भव, कालापेक्षा नौगमा । (१) ओघसे ओघ, अन्तर महुर्त एक सागरोपम । उ० च्यार । कोडपूर्व ११ सागरो. । (२) ओघसे ज० अन्तर• एक सागरो । उ० च्यार अन्तर० । च्यार सागरो। . । (३) ओघसे उ० अन्तर० एक सागरो० उ० च्यार कोडपूर्व १२
सागरो० (१) ज० से ओघ. अन्तरमहुर्त एक सागरोपम उ० च्यार अन्तर
- बारहा सागरोपम । (5) न०से जघन्य, अन्तर• एक सागरो० च्यार अन्तर०
च्यार सागरो० (६) ज०से उत्कृ० अन्तर० एक सागरो० च्यार कोडपूर्व १२
सागरो० . (७) उत्स० से ओघ० कोडपूर्व तीन सागरो० चार कोडपूर्व
१२ सागरो०