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(४३),, पांच मास दश रात्रिका तप करते अंतरे दो मासिक प्रायश्चित्त सेवन करने से वीश रात्रिका तप उसके साथ मिला देनेसे पूर्ण छे मास होता है, इसके आगे तप प्रायश्चित्त नहीं है. फिर छेद या नवी दीक्षा ही दी जाती है. भावनो पूर्ववत्.
(४४),, छे मासी प्रायश्चित्त तप करते हुवे मुनि, अन्तरे एक मासिक प्रायश्चित्त स्थानको सेवे, उसकी आलोचना करनेपर आचार्य उसे पूर्वतपके साथ पन्दर दिनोंका तप अधिक करावे.
(४५) एवं पांच मासिक तप करते. (४६) एवं च्यार मासिक तप करते. (४७) तीन मासिक तप करते. (४८) दो मासिक तप करते,
(४९) एवं एक मासिक तप करते अन्तरे एक मासिक प्रा. यश्चित्त स्थान सेवन कीया हो, तो आदा मास सबके साथ मिला देना, भावना पूर्ववत्.
(५०),, छे मासिक यावत् एक मासिक तप करते अ. न्तरे एक मासिक और प्रायश्चित्त स्थान सेवन कर माया संयुक्त आलोचना करे, उसे साधुको आचार्यने दोड (१॥) मासिक तप दीया है, वह साधु पूर्व तपको पूर्ण कर, उसके अन्तमें दोड (१॥ मासिक तप कर रहा है. उसमें और मासिक प्रायश्चित्त स्थानसे बी माया रहित आलोचना करे, उसे पन्दर दिनकी आलोचना दे के पूर्व दोड मासके साथ मिला देना. एवं दो मासका तप करे.
(५१), दो मासिक तप करते और मासिक प्रायश्चित्त स्थान सेषन कर आलोचना करनेसे, पन्दरादिनकी आलोचना दे पूर्व दो मासके साथ मिलाके अढाइ मासका तप करे.