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करना तथा प्रायश्चित्त तप करके निकलते हुवेको अगर लघु दोष लग जावे, तो उसी तपकी अन्दर सामान्यतासे वृद्धि कर शुद्ध कर देना.
(१८) इसी माफिक बहु वचनापेक्षा भी समझना.
जो मुनि प्रायश्चित्त सेवन कर निर्मळ भावोंसे आलोचना करते है. उसको कारण बतलाते हुवे, हेतु बतलाते हुवे, अर्थ बतलाते हुवे इस लोक परलोकके आराधकपनाके अक्षय सुख बतलाते हुवे प्रायश्चित्त देवे, और दीया हुवा प्रायश्चित्तमें सहायता कर उसको यथा निर्वाह हो एसा तप कराके शुद्ध बना लेवे. फर्ज गीतार्थ आचार्य महाराजकी है.
यह
(१९) बहुत से मुनि ऐसे है कि जो प्रायश्चित्त सेवन कीया, उसकी आलोचना भी नहीं करी है. उसे शास्त्रकारोंने 'प्रायश्चित्तीये' कहा है. और बहुतसे मुनि निरतिचार व्रत पालन करते हैं, उसे ' अप्रायश्चित्तीये' कहा है, वह दोनों प्रायश्चित्तीये, अप्रायचित्ती मुनि एकत्र रहना चाहे, एकत्र बैठना चाहे, एकत्र शय्या करना चाहे, तो उस मुनियोंको पेस्तर ' स्थविर महाराजको पुछना चाहिये, अगर स्थविर महाराज किसी प्रकारका खास कारन जानके आज्ञा देवे, तो उस दोनों पक्षवाले मुनियोंको एकत्र रहना कल्पै. अगर स्थविर महाराज आज्ञा न दे तो उस दोनों पक्षवालोंको एकत्र रहना नहीं कल्पै. अगर स्थविर महाराजकी
१ स्थविर तीन प्रकारके होते है. (१) वय स्थविर ६० वर्षकी आयुष्यवाला (२) दीक्षा स्थविर वीश वर्षका चारित्र पर्यायवाला, (३) सूत्र स्थविर स्थानांगसूत्र और समवायांग सूत्रके जानकार तथा कितनेक स्थानोंपर आचार्य महाराजको भी स्थविरके नामसे ही बतलाये है.