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( १७ ) ” कोइ साधु एक गच्छसे क्लेश कर वहांसे विगर मतखामणा कर, निकल दुसरे गच्छमें आवे, दुसरे गच्छवाले उस क्लेशी साधुको अपनेपास अपने गच्छमें रखे, उसे अशनादि च्यार आहार देवे, दिलावे, देतेको अच्छा समझे.
भावार्थ - क्लेशवृत्तिवाले साधुवोंके लीये कुछ भी रोकावट न होगा, तो एक गच्छमें क्लेशकर, तीसरे गच्छमें जायेगा, एक. गच्छक क्लेशी साधुको दुसरे गच्छवाले रखलेंगे तो उस गच्छका साधुको भी दुसरे गच्छवाले रखलेंगे इससे क्लेशकी उत्तरोत्तर वृद्धि होगी, शासनकी हीलना, आत्मकल्याणका नाश, क्षांत्यादि गुणोंका उच्छेद आदि अनेक हानि होगी.
(१८) एवं क्लेशी साधुवोंका आहार ग्रहन करे.
( १९-२० ) वस्त्रादि देवे, लेवे.
( २१ - २२ ) शिक्षा देवे, लेवे.
( २३ - २४) सूत्र सिद्धांतकी वाचना देवे, लेवे. भावार्थ - ऐसे क्लेशी साधुवोंका परिचयतक करनेसे, चेपी रोग लगता है. वास्ते दूरही रहना चाहिये. एक साधुसे दूर र हेगा, तो दूसदकों भी क्षोभ रहेगा.
(२५),, साधुवांके बिहार करने योग्य जनपद--देश मोजूद होते हुवे भी बहुत दिन उल्लंघने योग्य अरण्यको उल्लंघ अनार्य देश ( लाट देशादि ) में बिहार करे. ३
भावार्थ - अपना शारीरिक सामर्थ्य देखा विगर करनेसे रस्ते में आदाकर्मी आदि दोष तथा संयम से पतित होनेका संभव है.
( २६ ) जिस रहस्ते में चौर, धाडायती, अनार्य, धूर्तादि हो, ऐसे रहस्ते जावे. ३