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(६३), दूतीकर्म आहार-उधर इधरका समाचार कहे के आहार ग्रहन करे. ३
(६४) ,, निमित्त आहार-ज्योतिष प्रकाश करके आहार.३ (६५),, अपने जाति, कुलका अभिमान करके आहार.३ (६६),, रंक भिखारीकी माफिक दीनता करके ,, ३ (६७) ,, वैद्यक-औषधिप्रमुख बतलायके आहार लेवे. ३ (६८-७१),, क्रोध, मान, माया, लोभ करके आहार लेघे.३
( ७२ ) , पहला पीछे दातारका गुण कोर्तन कर आहार लेवे.३
(७३) ,, विद्यादेवी साधन करनेकी विद्या बताके ,, ३ (७४ ) ,, मंत्रदेव साधन करनेका प्रयोग बताके ,, ३
( ७६ ) ,, चूर्ण- अनेक औषधि सामेल कर रसायण बताके ,, ३
(७६) ,, योग-क्शीकरणादि प्रयोग बतलायके ,, ३
भावार्थ--उक्त १५ प्रकारके कार्य कर, गृहस्थोंकी खुशामत कर आहार लेना निःस्पृही मुनिको नहीं कल्पै.
उपर लिखे, ७६ बोलोंसे एक भी बोल सेवन करनेवालोंको लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त होता है. प्रायश्चित्त विधि देखो बीसवां उद्देशामें.
इति श्री निशिथसूत्र-बेरहवां उद्देशाका संक्षिप्त सार.