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(३७) तैलमें देखे. ( ३८ ) ढीलागुलमें देखे. ( ३९ ) चरबीमें देखे.
भावार्थ-उक्त पदार्थों में मुनि अपना शरीर मुंह) को देखे, देखावे, देखतोंको अच्छा समझे. देखनेसे शुश्रूषा बढती है. सुन्दरता देख हर्ष, मलिनता देख शोकसे रागद्वेष उत्पन्न होते है. मुनि इस शरीरको नाशवन्त ही समझे. इसकी सहायतासे मोक्षमार्ग साधनेका ही ध्यान रखे.
(४०),, शरीरका आरोग्यताके लीये वमन (उलटी करे. ३ ( ४१ , एवं विरेचन ( जुलाब ) लेवे. ३ (४२ ) वमन, विरेचन दोनों करे. ३ .
(४३) आरोग्य शरीर होनेपर भी दवाइयों ले कर शरीरका बल-वीर्यकी वृद्धि करे. ३
भावार्थ-शरीर है, सो संयमका साधन है. उसका निर्वाहके लीये तथा बेमारी आनेपर विशेष कारण हो तो उक्त कार्य कर सके. परन्तु आरोग्य शरीर होनेपर भी प्रमादकी वृद्धि कर अपने ज्ञान-ध्यानमें व्याघात करे, करावे, करतेको अच्छा समझे, वह मुनि प्रायश्चित्तका भागी होता है.
(४४) ,, पासत्था साधु, साध्वीयों ( शिथिलाचारी ) मयमको एक पास रखके केवल रजोहरण, मुखपत्रिका धारण कर रखी हो, ऐसे साधुवोंको वन्दन-नमस्कार करे.३
( ४५ ) एवं पासत्थावोंकी प्रशंसा-तारीफ श्लाघा करे. ३
(४६) एवं उसन्न-मूलगुण पंचमहाव्रत, उत्तरगुण पिंडवि. शुद्धि आदिके दोषित साधुवोंको वन्दन करे. ३