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करने पर भी गृहस्थ नहीं जाता हो तो उसकी निश्रायसे मकान से बाहर निकलना तथा प्रवेश करना नहीं कल्पै. अगर ऐसा करे तो मुनि प्रायश्चित्तका भागी होता है.
( १५ ),, राजा - ( प्रधान, पुरोहित, हाकिम, कोटवाल, और नगरशेठ संयुक्त ) जाति, कुल, उत्तम ऐसा क्षत्रिय जातिका राजा, जिसके राज्याभिषेकके समय अपने गोत्रजोंको भोजन कराने निमित्त तथा किसी प्रकार के महोत्सव निमित्त अशनादि च्यार प्रकारका आहार निपजाया ( तैयार कर (या ), उस अश नादि च्यार प्रकारका आहारसे साधु साध्वी आहारादि ग्रहन करे, करावे, करतेको अच्छा समझे.
भावार्थ- द्रव्यसे वहां जानेसे लघुता होवे, लोलुपता बढे, बहुत से भिक्षुक एकत्र होनेसे वस्त्र, पात्र, शरीरकी विराधना होवे, भाव से अपना आचार में खलल पहुंचे. शुभाशुभ होनेसे साधुवोंपर अभावका कारण होवे इत्यादि अनेक दोषोंका संभव है. वास्ते मुनि ऐसा आहारादि ग्रहन न करे. अगर कोइ आज्ञा उल्लंधन करेगा, वह इस प्रायश्चित्तका भागी होगा.
(१६) एवं राजाकी उत्तरशाला अर्थात् बेठनेकी कचेरी तथा अन्दरका घरकी अन्दर से अशनादि च्यार आहोर ग्रहन करे. ३
( १७ ) अश्वशाला, हाथीशाला, विचार करनेकी शाला, गुप्त सलाह करनेकी शाला, रहस्यकी वार्त्ता करनेकी शाला, मथुन कर्म करनेकी शाला, उक्त स्थानोंमे जाते हुवेका अशनादि च्यार आहार ग्रहन करे. ३
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( १८ ) संग्रह कीया हुवा, संग्रह करते हुए पक्वानादि, तथा मेवा मिष्टान्नादि और दुध, दहीं, मक्खन, घृत, गुड, खांड, सक्कर, मिश्री, और भी भोजनकी जाति ग्रहन करे. ३