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________________ (४४ ) है वह पूर्वकर्मोकी प्रेरणासे ही होते है जेसे दो मनुष्य एक ही कीमा पार करते है जिसमें एकको लाभ दुसरेको नुकशान हो यह पूर्वकमका ही फल है एसे ही एक पिताके दो पुत्र है एक राज करता हजारोंपर हुकम चलाते है दुसरेको उदर पोषणको ना ही कष्टसे मीलता है, दो करसानि क्षेती करे जिसमें एकको मौद्ध धान होता है दुसरेकों कुच्छ भी नही यह भी पूर्व कर्मोंकाही फल है। एसा भी नही मानना चाहिये कि इस्मे उद्यम करना प्रधान है क्युकि एक मूषकने अपने उदर पोषणके लिये एक छाक काटना सरू कीया उन्ही छाबके अन्दर एक सर्पथा छायकों काटके मूषक अन्दर गया तो सर्पने मूषकका भक्षण करलिया अलम् उद्यम भी कुच्छ फल दाता नहीं है किन्तु फल दाता पूर्व कृत कर्म ही है तथा अवतारी पुरूष चक्रवर्त बलदेव वासुदेव सेठ इत्यादि जो दुःखी सुखी रोगी निरोगी यश अयश आदय भनादय सुस्वर दु:स्वर सुशील दुशील चातुर्य मूर्खता इत्यादि होना सब पूर्वकृतकर्म है सिवाय कर्मोंके कुच्छ भी नही होता है वास्ते हमाराही मानना सुन्दर है । (५) पुरुषार्थबादी - पुरुषार्थबादीका मत्त है कि न काल न स्वभाव, न नियत और न कर्म, जो कुच्छ होता है वह सब पुरुषार्थ से ही होता है जेसे दुद्धसे वृत निकलना हो उन्हीमें काल स्वभाव नियत और पूर्वकर्म कि जरूरत क्या है वह घृत पुरुषार्थसे ही प्राप्ती हो शक्ता है न कि पूर्वकर्म कर बैठ जानेपर दुइसे वृत निकल शकता है एसे तीलोसे तेल, पुष्पोंसे अत्तर, धुलसे धातु, पृथ्वीसे पाणी नीकालना, क्षेती कर धान्य पैदास करना यह सब
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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