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________________ (२८) (३) जेसे सर्व जातिकि रत्नोंके अन्दर वैडूय जातिके रत्न महात्ववाले बहु मूल्य और शोभनिक= प्रधान है इसी माफीक सर्व व्रतोंमें ब्रह्मचार्य व्रत अमूल्य शोभनिक और प्रधान है। (१) जेसे सर्व जातिके भूषणोंमें मस्तकका मूकट महात्ववाला प्रधान है इसी माफीक सर्व व्रतोंमें मुगटमणि सामान शोमनिय हे तो एक ब्रह्मचार्य व्रत ही प्रधान है। ... (५) जेसे सर्व वस्त्रकि जातिमें खेमयुगल ( कपासका ) वस्त्र प्रधान शोभनिय और महात्ववाला है इसी माफोक सर्व व्रतोंमें ब्रह्मचार्य व्रत महात्व शोभनिय और प्रधान है । . (६) जेसे सर्व जातिके चन्दनोंमे बावना (गोसीस ) चन्दन सुगन्ध और शीलता देनेमे महात्व और प्रधान है इसी माफीक सर्व व्रतोंमे कषायको शीतल करनेमें और तीन लोकमें यशोकीर्तिसे सुवातीत हे तो एक ब्रह्म वार्य व्रत ही महत्ववाला प्रधान है। (७) जेसे सर्व जातिके पुष्पोंके अन्दर अरिबिंद जातके पुष्प महात्ववाले सुन्दराकार सुवासीत और प्रधान है इसी माफोक सर्व व्रतोंमें ब्रह्मचार्य व्रत महात्ववाला सुन्दराकार सर्व जगतके मनको आनन्द करनेवाला आत्म रमणतामें सुगन्धसे सुवासीत शिवसुन्दरीको मोहित करनेवाला प्रधान है। (८) जेसे सर्व पर्वतोंमें औषधीश्वर चुलहेमवन्त पर्वत प्रधान है इसी माफीक सर्व वनोंमें कर्मरूपी रोग नासक औषधीश्वर चैतन्यकों बलवान बनाने में अप्रेश्वर ब्रह्मचार्य व्रत ही प्रधान है।
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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