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________________ १२० श्रवण कर श्रद्धा प्रतीत रुचि कर सके ! धर्म सुन तो सके, परन्तु श्रद्धा प्रतीत रुचि कर सके ? धर्म सुन तो सके परन्तु श्रद्धा प्रतीत रुचि नहीं ला सके. वह महारंभी, यावत् कामभोगकी इच्छावाला मरके दक्षिणकी नरकमें उत्पन्न होता है. भविष्य में दुर्लभबोधि होगा. आर्य ! उस निदानका यह फल हुवा कि वह धर्म श्रवण करनेके योग्य होता है, परन्तु धर्मपर श्रद्धा प्रतीत रुचि नहीं कर सके. ॥ इति ॥ (६) हे आर्य ! मैं जो धर्म प्ररुपा है. वह सर्व दुःखोंका अन्त करनेवाला है. इस धर्मकी अन्दर साधु-साध्वी पराक्रम करते हुवेकों मनुष्य संबन्धि कामभोग अनित्य है. यावत पहिले पीछे अवश्य छोडने योग्य है। इससे तो उर्ध्वलोकमें जो देवों है, वह अन्य देवतावोंकी देवीयोंको वश कर नहीं भोगवते है, परन्तु अपनी देवीयोंको वश कर भोगवते है. तथा अपने शरीर से वैक्रिय देव-देवी बनाके भोग भोगवते है. वह अच्छे है. वास्ते हमारे तप, संयम, ब्रह्मचर्यका फल हो तो हम उस देवोंमें उत्पन्न हुवे. ऐसा निदान कर आलोचना नहीं करता हुवा काल कर वह देवता होते है. पूर्वकृत निदान माफिक देवतावों संबन्धी सुख भोगवके वहांसे चवके उत्तम कुल - जातिमें मनुष्यपणे उत्पन्न होते है. यावत् महाऋद्धिवन्त जहांतक एकको बोलानेपर पांच आके हाजर हुवे.
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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