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________________ ११५ बुलानेपर च्यार पांच हाजर होते हैं. यावत् सर्व प्रथम निदानकी माफिक उस स्त्रीको देख साध्वीयों निदान करेकि-मेरे तप, संयम, ब्रह्मचर्यका फल हो, तो मैं भविष्यमें इस स्त्रीकी माफिक भोग भोगवती विचलं. इति साध्वीका निदान. ... हे आर्य ! वह साध्वीयों निदान कर उसकी आलोचना न करे, यावत् प्रायश्चित्त न ले, विराधक भावमें काल कर महर्द्धिक देवतापणे उत्पन्न होवे, वहांसे जो निदान किया था, ऐसी स्त्री होवे, ऐसाही सुख-भोग प्राप्त करे, यावत् भोग भोगवती हुइ विचरे, उस स्त्रीको दोनों कालमें धर्म सुनानेवाला मिलने परभी धर्म नहीं सुने, अर्थात् धर्मश्रवण करनेकोभी अयोग्य है. वह महारंभ यावत् कामभोगमें मूच्छित हो, कालकर दक्षिण दिशाकी नारकीमें उत्पन्न होवे, भविष्यमेंभी दुर्लभ बोधि होवे. हे मुनियों इस निदानका यह फल हुवाकि केवली प्ररुपित धर्मका श्रवण करनाभी नहीं बने, अर्थात् धर्म श्रवण करनेके लीयेभी अयोग्य होती है. (३) हे आर्य ! मैं जो धर्म प्ररुपण कीया है, उसकी अन्दर यावत् पराक्रम करता हुवा साधु कोइ स्त्रीको देखे, वह अति रुप-यौवनवती यावत् पूर्ववत् वर्णन करना. उसको देख, साधु निदान करेकि निश्चय कर पुरुषपणा बडाही खराब है, कारण, पुरुष होनेसे बडे बडे संग्राम करना पडता है. जिसकी अन्दर तीक्षण शस्त्रसे प्राण देना पडता है. औरभी व्यापार
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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