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________________ कल्प यावत् मरके दक्षिणकी नरकमे जावे. भविष्यके लीयेभी दुर्लभ बोधी होता है. हे आयुष्यवंत श्रमणो ! तथारुपके निदानका यह फल हुवा कि वह जीव केवली प्ररुपित धर्म श्रवण करनेके लीयेभी अयोग्य है. अर्थात् केवली प्ररुपित धर्मका श्रवण करनाही दुष्कर हो जाता है. इति प्रथम निदान.. .. (२) अहो श्रमणों ! मैंने जो धर्म प्ररुपित कीया है, वह यावत् सर्व शारीरिक और मानसिक दुःखोंका अन्त करनेवाला है. इस धर्मकी अन्दर प्रवृत्ति करती हुइ सामीयों बहुवसे परीपह-उपसर्गोंको सहन करती हुइ, काम विकारका पराजय करनेमे पराक्रम करती हुइ विचरती है, सर्व अधिकार प्रथम निदानकी माफिक समझना. - एक समय एक स्त्रीको देखे, वह स्त्री कैसी है कि जगतमे वह एकही अद्भुत रुप लावण्य, चतुराइवाली है, मानो एक मातानेही ऐसी पुत्रीको जन्म दीया है. रत्नोंके आभरण समान, तेलकी सीसीकी माफिक उसको गुप्त रीतिसे संरक्षण कीया है, उत्तम जरी खीनखाप आदि वस्त्रकी सिंदुककी माफिक उन्हका संरक्षण कीया है, रत्नोंके करंडकी माफीक परम अमूल्य जिन्हको सर्व दुखोंसे बचाके रक्षण कीया है. वह स्त्री अपने पिताके घरसे निकलती हुइ, पतिके घरमें जाती हुइ, जिसके आगे पीछे बहुतसे दास, दासी, नोकर, चाकर, यावत् एकको
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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