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________________ १०८ कर राजाश्रेणिक बडाही हर्षको प्राप्त हुवा आप मजन घरमें प्रवेश करके स्नान मजन कर पूकी माफिक अच्छे सुन्दर वस्त्रमाण धारण कर, कल्पवृक्षकी माफिक बनके जहाँपर चेलणाराणी थी, वहांपर आया और चेलणा राणीसे कहा कि-हे प्रिया ! आज श्रमणभगवान् वीरप्रभु गुणशीलोद्यानमें पधारे हुवे है. उन्होंका नाम-गोत्र श्राण करने का भी महाफल है, तो भगवान्को वन्दन करना, नमस्कार करना और श्रीमुखसे देशना श्रयण करना इसके फलका तो कहेना ही क्या ?, वासे चलो भगवान्को वन्दन-नमस्कार करे, भगवान् महामंगल है. देवताके चैत्यकी माफिक उपासना करने योग्य है, राणी चेलणा यह वचन सुनके बडा ही हर्पको प्राप्त हुइ. अपने पतिकी आज्ञाको शिरपे चढाके आप मजन घरमें प्रवेश किया. वहांपर स्वच्छ सुगन्धि जल से सविधि स्नान--मञ्जन कर शरीरको चन्दनादिसे लेपन कर ( कृतवलिकर्म-देवपूजन करी है ) शरीरमें भूषण, जैसे पायोंमें नेपुर, कम्मरमें मणिमंडित कंदोरा, हृदयपर हार. कानोमें चमकते कुंडल, अंगुलीयों में मुद्रिका, उत्तम खलकती चुडीयें, मांदलीये--इत्यादि रत्नजडित भूषणोंसे सुशोभित, जिसके कुंडलोंकी प्रभाने वदनकी शोभामे वृद्धि करी है. पेहने है कान्तिकारी रमणीय, बडा ही सुकुमाल जो नाककी हवासे उड जावे, मकीके जाल जैसे वस्त्र, और भी सुगन्धि पुष्पोंके बने हुवे तुरे गजरे, सेहरे, मालावों आदि धारण किया है. चर्चित चन्दन कान्तिकारी है दर्शन जिन्होंका, जिसका रुप
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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