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________________ २०० (८) अपने किया हुवा अपराध, अनाचार, दुसरेके शिरपर लगादेनेसे—(6) आप जानते है कि यह बात जूठी है तो भी परिषदकी अन्दर बैठके मिश्र भाषा बोलके क्लेशकी वृद्धि करनेसे-(१०) राजा अपनी मुखत्यारी प्रधानको तथा शेठ मुनिमको मुखत्यारी देदी हो, वह प्रधान, तथा मुनिम उस राजा तथा शेठकी दोलत-धन तथा स्त्री आदिको अपने स्वाधीन करके राजा तथा शेठका विश्वासघात कर निराधार बना उन्हका तिरस्कार करे, उसके कामभोगामें अन्तराय करे, उसको प्रतिकूल दुःख देवे, रुदन करावे, इत्यादि. तो महामोहनीय कर्म उपार्जन करे. (११) जो कोइ बाल ब्रह्मचारी न होनेपरभी लोगोंमे बालब्रह्मचारी कहाता हुवा स्त्रीभोगोंमे मूछित बन स्त्रीसंग करे, तो महा मोहनीय कर्म उपार्जन करे. (१२) जो कोइ ब्रह्मचारी नहीं होनेपरभी ब्रह्मचारी नाम धराता हुवा स्त्रीयोंके कामभोगमें आसक्त, जैसे गायोंके टोलेमें गर्दभकी माफिक ब्रह्मचारीओंकी अन्दर साधुके रुपको लजित-शरमिंदा करनेवाला अपना आत्माका अहित करनेवाला, बाल, अज्ञानी, मायासंयुक्त, मृषावाद सेवन करता हुवा, कामभोगकी अभिलाषा रखता हुवा महा मोहनीय कर्म उपार्जन करे. (१३) जो कोइ राजा, शेठ तथा गुर्वादिकी प्रशंसासे लोगोंमे मानने पूजने योग्य बना है, फिर उसी राजा, शेठ तथा गुर्वादिकके गुण, यश कीर्तिको नाश करनेका उपाय करे, अर्थात् उन्होंसे प्रति: कूल बर्ताव करे, तो महा मोहनीय कर्म उपार्जन करे, (१४)
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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