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मन हुवा, राजा कोणिक सपरिवार च्यार प्रकारकी सेना सहित तथा नगरीके लोक भगवानको वन्दन करनेको आये. भगवानने विचित्र प्रकारकी धर्मदेशना दी. परिषद देशनामृतका पान कर पीछे गमन कीया.
भगवान् अपने साधु, साध्वीयोंको आमंत्रण कर कहते हुवेकि-हे आर्यो ! महा मोहनीय कर्मबन्धके तीस स्थान अगर पुरुष या स्त्रीयों वारवार इसका आचरण करनेसे समाचरते हुवे महामोहनीय कर्मका बन्ध करते है. वहही तीस स्थान मैं आज तुमको सुनाता हूं, ध्यान देके सुनो
(१) त्रस जीवोंको पाणीमें डुबा डूबा के मारता है. वह जीव महामोहनीय कर्म उपार्जन करता है. (२) त्रस जीवोंका श्वासोश्वास बन्धकर मारनेसे-(३) त्रस जीवोंको अनि या धुमसे मारनेसे--(४) सर्व अंगमें मस्तक उत्तम अंग है, अगर कोइ मस्तकपर घाव कर मारता है, वह जीव महा मोहनीय कर्म उपार्जन करता है. (५) मस्तकपर धर्म वीटके जीवोंको मारता है, वह महामोहनीय कर्म उपार्जन करता है. (६) कोइ वावले, गूंगे, लूले, लंगडे या अज्ञानी जीवोंको फल या दंडसे मारे या हांसी, ठटा, मरकरी करते है, वह महा मोहनीय कर्म पान्धता है. (७) जो कोइ प्राचारी नाम धराता हुवे, गुप्तपणे अनाचारको सेवन करे, अपना अनाचार गुप्त रख'नेके लीये असत्य बोले तथा वीतरागके वचनोंको गुप्त रख आप उत्सूत्रोंकी प्ररुपणा करे, तो महा मोहनीय कर्म बांधे.