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________________ *म हो बोलने लग जाते है इसी माफीक उक्त शब्द श्रवण करते ही कामविकार सचेतन होजाता है वास्ते वह शब्द कानोद्वार श्रवण नही करना चाहिये । अगर सुनेगा तो पूर्ववत धर्मसे भ्रष्ट होगा। . (६) छटी वाड-ब्रह्मचार्य व्रत धारण कियां पेहला जो संसारभे विषयभोग विलासादि सेवन कियाथा उन्होंकों फीस्से समरण न करना चाहिये । कारण अनाभोग विष सेवन किये हुवे को फीर स्मरण करनेसे मनुष्य मृत्यु धर्मकों प्राप्त होजाते है जेसे एक मटियारके वह दो मुसाफर आये थे रवाने होते हुवेको उन्ही मटीयारने छास पीलाइथी वह मुसाफर तो चलेगये पीच्छेसे देखे तों रात्रीमें छास भीलोइ थी जीम्मे सर्प था खे । यह मुपाफर १२ वर्षोंसे पीछे उन्हीं भटीयारके वहा आके अ ना नाम बत. लाया तो उन्ही भटियारने कहा क्या पुत्रों तुम अबो तक जीवते हो ? उन्ही मुपाफरोंने एसा केहने का कारण पुच्छा । तब भटसारने कहा कि हे बन्धु मेने जो तुमको छाप पीलाइ थी उन्हीके अन्दर सर्पका विष था इतने सुनते ही वह मुसाफर एक दम 'हे' करते परलोक पहुंच गये । वास्ते गतकालके काम भोगोंकों स्मरणमें नहीं लाना चाहिये । अगर करेगा तो पूर्व० भ्रष्ट होगा। - (७) सातवी वाड-ब्रह्मचारीयोंकों प्रतिदिन 'प्रणीत आहार" सरसाहार अर्थात् दुइ दही घृत पकवान मिष्टानादिका आहार नहीं करना चाहिये वारण उक्त आहार काम विकारकों उतेज्जन देता है जेसे कि सन्निपातके रोगवालोंकों दुद्ध मिश्री पीलानेसे रोगकि वृद्धि होती है वास्ते सरसाहार नही करते हुवे शरीरको वाडा तुल्य लुखा सुखा ही माहार करना चाहिये । अगर करेगा तो पूर्ववत् भ्रष्ट होगा।
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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