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________________ (२१) पेस्तर सम्यक दर्शन के लिये प्रयत्न करना चाहिये । कारण विन कार्यक प्राप्ती नहीं हो शक्ती है। वास्ते सम्यकूदर्शनका कारण सत्संग है, सत्संगका कारण तत्व विचार है और तत्त्व विचारसे अज्ञानका नाश होता है, अज्ञानका नाश होना से संसारका नाम होता है वास्ते सम्यक्दर्शन प्राप्तीकि कोशीष आवश्य करना चाहिये । शम् | नम्बर ७ सूत्र श्री उत्तराध्ययनजी अध्ययन १६ ( ब्रह्मचार्य व्रत ) भगवान वीरप्रभुने मुनियोंके पंच महाव्रतरूप धर्म फरमाया है जिसमे ब्रह्मचार्य पालनरूप चतुर्थ व्रतका व्याख्यान खुब हि atraौरसे किया है। यह व्रत पालन करना कायर पुरुषों को बडा हि दुष्कर है। जिन्ही महान पुरुषोंने एक ब्रह्मचार्य व्रत ही पालन किया है उन्होंकों मानो हजारो गुणोकों प्राप्त कर लिया है कारण यह व्रत सर्व के सीवर समान है। जो सच्चे दीकसे इस व्रतका आराधन करते है उन्होंकों जो दुनीयोंमें दुसाद्य विद्यावो है वह अपने स्थानपर आके चरणोंमें नमस्कार करती है । वचन fe और अनेक लfor तों सहेजमें हो प्राप्ती हो शक्ती है। इतना हि नहि किन्तु ब्रह्मचारी पुरुषोंका शरोर भी दुनियोंकि दवाइ अर्थात रोग नष्टमें आग्रेश्वर औषधिरूप हो जाते है तथा ब्रह्मचारी पुरुषोंके शरीरका स्पर्श होते ही रोगीयोंके रोग कुंच कर जाते है" किमधिकम् "
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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