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________________ ( २० ) तथा संसार संबन्धि सर्व सम्बद्य वैपारको त्याग किया है एसा जो अनवार - साधु-मुनि इर्यासमिति यावत् सर्व मुनिगुण संपन' हो जहातहा वीतरागोंका प्रवचनको आगे कर विचरता है एसे महात्मानोंके तपश्चर्य करते हुवे कीतनोंककों केवलज्ञान उत्पन्न होते हैं फीर बहुत काल केवलज्ञान पर्याय पालते हुवे अनेक भ्रव्यात्मावका उद्धार करते हुवे मोक्ष पधार जाते हैं । जो कितनेक 1 महात्मावोंको पहले केवल ज्ञान नही होते है किन्तु अन्तिम समय केवल ज्ञान हो जाते हैं फीर मोक्ष जाते है और कितनेक महामावोंके शेष रह जाते है वह कांहा जाते है ? (उ) मुनिपदका आराधी हो सर्वार्थसिद्धि विमानमें जाते हैं वह परलोक के आराधी है और एक ही भव करके सिद्धामोक्षमे जावेगा ॥ १९ ॥ ( ) ग्रामादिकके अन्दर एकेक मनुष्य होते है वह सर्व कामसे विरक्त सर्वरागसे विरक्त सर्व प्रकारे संगसे रहित सर्व tarra stant क्षय कीया है एसे ही सर्व प्रकार से मान माया लोभ और सर्व प्रकार के कर्म ( अष्टकमका ) को क्षय किया है । वह महा भाग्यशाली अपनि आत्माकों सर्वते प्रकार से निर्मल कर लोकप्रभाग में विराजमान हो गये है । यहांपर एकेक मनुष्य कहा है वह पूर्व भावापेक्षा ही कहा है। हे भव्य जीवों मोक्षपद प्राप्तीमें विघ्नभूत रूप शत्रु जो क्रोध मान माया लाभ है इन्होंकों मूलसे नष्ट करनेका प्रयत्न आवश्य करना चाहिये । इन्हीं प्रश्नोंद्वारा शास्त्रकारोंने स्पष्ट बतला दिया है किं अनेक कष्ट किया करने पर भी सम्यग्दर्शन रहित जीवोंकों भवमरूपी जो संसार है वह कदापि छूट नहीं शक्ता है वास्ते •
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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