SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 342
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१४ एवं शरीर शुद्धि करते वखत पशु-पक्षीकी इंद्रियसे अकृत्य कार्य करनेसे भी चातुर्मासिक प्रायश्चित्त होता है. यह दोनों सूत्र मोहनीय कर्मापेक्षा है. कारण-कर्मोकी विचित्र गति है. वास्ते असे अकृत्य कार्योंके कारणोंको प्रथम ही शास्त्रकारोंने निषेध कीया है. (१५) साध्वीयोंको निम्नलिखित कार्य करना नहीं कल्पै. (१६) एकेलीको रहना, (१७) एकेलीको टटी-पैसाव करनेको जाना (१८) एकेलीको विहार करना, (१६) वस्त्ररहित होना, (२०) पावरहित गौचरी जाना, (२१) प्रतिज्ञा कर ध्यान निमित्त कायाको वोसिरा देना, ( २२ ) प्रतिज्ञा कर एक पसचा (वा)डे सोना, ( २३ ) ग्राम यावत् राजधानीसे बाहार जाके प्रतिज्ञापूर्वक ध्यान करना नहीं कल्पै.अगर ध्यान करना हो तो अपने उपासरेकी अन्दर दरवाजा बन्ध कर ध्यान कर सकते है. (२४) प्रतिमा धारण करना, ( २५ ) निषद्या-जिसके पांच भेद है-दोनों पांव बराबर रख बैठना, पांव योनिसे स्पर्श करते बैठना, पांवपर पांव चढाके बैठना, पालटी मारके बैठना, अद पालटी मारके बैठना, ( २६ ) वीरासन करना, (२७) दंडासन करना,
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy