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________________ (१०) अगर रात्रि या वैकाल समय में मुनिको भात - पाणीका उगाला या गया हो, तो उसको निर्जीव भूमिपर यतनापूर्वक परठ देना चाहिये. अगर नहीं परठे और पीछा गले उतार देवे, तो उस मुनिको रात्रि भोजनका पाप लगनेसे गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त होता है. (११) साधु-साध्वीयोंको जीव सहित आहार- पानी ग्रहन करना नहीं कल्पै. अगर अनजानपणे या गया हो, जैसे साकर - खांडमे कीडी प्रमुख उसको साधु समर्थ है कि जीवोंको अलग कर सके. तो जीवोंको अलग करके निर्जीव आहारको भोगवे कदाच जीव अलग नहीं होता हो तो उस आहारको एकान्त निर्जीव भूमिका देखके यतनापूर्वक परठे. (१२) साधु-साध्वी गौचरी लेके अपने स्थानपर था रहे है, उस समय उस आहारकी अन्दर कचे पानी की बुंद गिर जावे, अगर वह श्रहार गरमागरम हो तो आप स्वयं भोगवे दुसरेको भी देवे. कारण - उस पानी के जीव उष्णाहारसे चव जाते है. परन्तु आहार शीतल हो तो न आप भोगवे, और न तो अन्य साधुवों को देवे. उस आहारको विधिपूर्वक एकांत स्थानपर जाके परठै. (१३) साध्वी रात्रि तथा वैकाल समय टटी - पेसाब करते समय किसी पशु-पक्षी श्रादिके इंद्रिय स्पर्श हो, तो आप हस्त कर्म तथा मैथुनादि दुष्ट भावना करें, तो गुरु चातुमासिक प्रायश्चित्त होता है.
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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