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________________ चातुर्मास करना नहीं कल्पै. भावार्थ-कालका विश्वास नहीं है. अगर असीही अवस्थामें काल करै, तो विराधक होता है. वास्ते खमतखामणा कर अपने आचार्योपाध्याय तथा गीतार्थ मुनियों के पास आलोचना कर प्रायश्चित्त लेके निर्मल चित्त रखना चाहिये. (३२) आलोचना करने परभी राग-द्वेषके कारणसे आचार्यादि न्यूनाधिक प्रायश्चित्त देवे, तो नहीं लेना, अगर सत्रानुसार प्रायश्चित्त देनेपर शिष्य स्वीकार नहीं करता हो, तो उसको गच्छके अन्दर नहीं रखना. कारण-झैसा होनेसे दुसरे साधुभी असाही करेंगे इसीसे भविष्यमें गच्छ-मर्यादा, और संयम व्रत पालन करना दुष्कर होगा, इत्यादि. (३३ ) परिहार विशुद्ध (प्रायश्चित्तका तप करता हुवा) साधुको आहार पाणी एक दिनके लीये अन्य साधु साथमें जाके दिला सकै, परन्तु हमेशां के लीये नहीं. कारण एक दिन उसको विधि बतलाय देवे. परन्तु वह साधु व्याधिग्रस्त हो झुंझर हो, कमजोर हो, तो उसको अन्य दिनोंमें भी प्राहार-पाणी देना दिलाना कल्पै. जब अपना प्रायश्चित्त पूर्ण हो जावे, तब वैयावच्च करनेवाला साधु भी प्रायश्चित्त लेवे, व्यवहार रखनेके कारणसे. (३४ ) साधु-साध्वीयोंको एक मासकी अन्दर दोय, तीन, च्यार, पांच महानदी उतरणी नहीं कल्पै. यथा-(१) गंगा, (२) यमुना, (६) सरस्वती, (४) कोशिका, (५) मही,
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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