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________________ इसीसे भविष्यमें बहुत ही लाभका कारन होगा. इस इरादेसे अन्य गच्छमें जा सकते है. (नोट ) इन्ही महात्मावोंकी कितनी उच्च कोटिकी भावना और शासनोन्नति, आपसमे धर्मस्नेह है. भैसी. प्रवृति होनेसे ही शासनकी प्रभावना हो सकती है. (३०) कोइ साधु रात्रीमें या वैकाल समयमे कालधर्म प्राप्त हो जाय तो अन्य साधु गृहस्थ संबंधी एक उपकरण (वांस ) सरचीना याचना करके लावे और कंबली प्रमुखकी झोली बनाके उस वांससे एकांत निर्जीव भूमिकापर परखै. भावार्थ-वांस लाती बखत हाथमें उभा वांसको पकडे, लाते समय कोइ गृहस्थ पूछ कि-'हे मुनि ! इस वांसको आप क्या करोगे ? ' मुनि कहै-' हे भद्र ! हमारे एक साधु कालधर्म प्राप्त हो गया है, उसके लीये हम यह वांस ले आते है. इतनेमे अगर गृहस्थ कहै कि-हे मुनि ! इस मृत मुनिकी उत्तर क्रिया हम करेंगे, हमारा आचार है. तो साधुवोंको उस मृत कलेवरको वहांपर ही बोसिराय देना चाहिये. नहि तो अपनी रीति माफिक ही करना उचित है. (३१) साधुवोंके आपसमें क्रोधादि कषाय हुवा हो तो उस साधुवोंको बिना खमतखामणा-(१) गृहस्थों के घरपर गौचरी नहीं जाना, अशनादि च्यार प्रकारका आहार करना नहीं कल्पै. टटी पैसाब करना, एक गामसे दुसरे गाम जाना, और एक गच्छ छोडके दुसरे गच्छमे जाना नहीं कल्पै. अलग
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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