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________________ याचना करनी कल्पै । कारन-जीवोंकी यतना और गृहस्थोंकी प्रतीति रहै। (२७) साधुवों जिस मकानमें ठहरे है, उसी मकानसे शय्या, संस्तारक अाज्ञासे ग्रहण किया था, वह अपने उपभोगमें न आनेसे उसी मकानमें वापिस रख दिया, उसी दिन अन्य साधु आये और उन्हको उस शय्या संस्वारककी आवश्यकता हो, तो प्रथमके साधुसे रजा लेके भोगवे । कारनपहिलेके साधुने अबतक गृहस्थको सुप्रत नहीं कीया । अगर पहिलेके साधुवोंका मास कल्पादि पूर्ण हो गया तो पुनः गृहस्थोंकी आज्ञा लेके उस पाटादिको वापर सकते है, तीसरे व्रतकी रक्षा निमित्ते । (२८) पहिलेके साधु विहार कर गये हो, उन्होका वस्त्रादि कोइभी उपकरण रह गया हो, तो पीछेके साधुवाँको गृहस्थकी आज्ञासे लेना और जब वो साधु मिलजावे अगर उन्हका हो तो उसको दे देना चाहिये अगर उन्हका न हो, तो एकान्त स्थानपर परठ देना । भावार्थ-ग्रहण करते समय पहिले साधुवोंके नामपर लिया था, अब अपना सत्यव्रत रखनेके लिये आप काममें नहीं लेते हुवे परठना ही अच्छा है। (२६ ) कोइ ऐसा मकान हो कि जिसमें कोइ रहता • न हो, उसकी देखरेख भी नहीं करता हो, किसीकी मालिकी न हो, कोइ पंथी (मुसाफिर) लोक भी नहीं ठहरता हो, उस
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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