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________________ कल्पै । भावार्थ-चतुर्मास क्षेत्रवाले लोगोंको भक्ति के लिये वस्त्रादि मगवाना पडता, उससे कृतगढ आदि दोषका संभव है। (१७) अगर वस्त्र लेना हो, तो चतुर्मासिक प्रतिक्रमण करनेसे पहिले ग्रहण कर लेना, अर्थात् शीतोष्णकाल आठ मासमें साधु साध्वीयोंको वस्त्र लेना कल्पै । ___ (१८) साधु साध्वयोंको उपयोग रखना चाहिये कि वस्त्रादि प्रथम रत्नत्रयसे वृद्ध होवे उन्होंके लिये क्रमशः लेना । एवं (१६) शय्या-संस्तारक भी लेना। (२०) एवं प्रथम रत्नादिको वन्दन करना। इसीसे विनय धर्मका प्रतिपादन हो सकता है । (२१) साधु साध्वीयोंको गृहस्थके घरपे जाके बैठना, उभा रहेना, सो जाना, निद्रा लेना, प्रचला (विशेष निद्रा) करना, अशनादि च्यार आहार करना, टटी पेसाब जाना, सज्झाय ध्यान, कायोत्सर्ग और आसन लगाना तथा धर्मचिंतन करना नहीं कल्पै । कारन-उक्त कार्य करनेसे साधु धर्मसे पतित होगा । दशवैकालिकके छठे अध्ययन-आचारसे भ्रष्ट, और निशीथसूत्रमें प्रायश्चित कहा है। अगर कोई वृद्ध साधु हो, अशक्त हो, दुर्बल हो, तपस्वी हो, चक्कर आते हो, व्याधिसे पीडित हो-ऐसी हालतमें गृहस्थोंके वहां उक्त कार्य कर सकते है।
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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