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(१२) यह दोनो उपकरण साधुओंको नहीं कल्प।
(१३ ) साध्वीयोंको गोचरी गमन समय अगर वस्त्र याचनाका प्रयोग हो तो स्वयं अपने नामसे नहि, किन्तु अपनी प्रवर्तिनी या वृद्धा हो उसके नामसे याचना करनी चाहिये । इसीसे विनय धर्मका महत्व स्वच्छन्दताका निवारण ओर गृहस्थोंको प्रतीति इत्यादि गुण प्राप्त होते है ।
(१४) गृहस्थ पुरुषको गृहवासको त्याग करनेके समय (१) रजो हरण (२) मुखवास्त्रिका ( ३.) गुच्छा ( पात्रोपर रखनेका ) झोली 'पात्र तीन संपूर्ण वस्त्र इसकी अंदर सब वस्त्र हो सकते है।
(१५) अगर दीक्षा लेनेवाली स्त्री हो तो पूर्ववत् । परन्तु वस्त्र च्यार होना चाहिये । इसके सिवा केइ उपकरण अन्य स्थानों पर भी कहा है । केइ उपगृही उपकरण भी होते है। अगर साधु साधीयोको दीक्षा लेनेके बाद कोइ प्रायश्चित स्थान सेवन करनेसे पुनः दीक्षा लेनी पडे तो नये उपकरण याचनकी आवश्यकता नहीं। वह जो अपने पास पूर्वसे ग्रहण किये हुवे उपकरण है, उन्होसे ही दीक्षा ले लेनी चाहिये ऐसा कल्प है।
(१६) साधु साधीयोंको चतुर्मासमें वस्त्र लेना नहि
१ पात्र तीन । २ एक वख २४ हाथका लंबा, एक हाथका पना एवं ७२ हाथ ।