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इन शीघ्रबोधभागोंको क्रमशः आद्योपान्त पढीये. इसके पढनेसे आपको ज्ञात हो जायगा कि सूत्रोंमें ऐसा कौनसा विषय है कि जो जनसमाजके पढने योग्य नहीं हैं ? अर्थात् वीतरागकी वाणी भव्यजीवोंका उद्धार करनेके लिये एक असाधारण कारण है, इसके आराधन करनेहीमे भव्यजीवोंको अक्षय सुखकी प्राप्ति हुई है-होती है-ओर होगी.
अन्तमें पाठकोंसे मेरा यह निवेदन है कि छद्मस्थोंसे भूल होनेका स्वाभाविक नियम है. जिसपर मेरे सरीखे अल्पज्ञसे भूल हो इसमें आश्चर्य ही क्या है ? परन्तु सजन जन मेरी भूलकी अगर सूचना देगे तो में उनका उपकार मान कर उसे खीकार करुंगा और द्वितीयावृत्तिमें सुधारा वधारा कर दिया जावेगा. इत्यलम्
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