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नने देशना दी. निषेढकुंमर देशना सुनि मातापिता कि आज्ञा प्राप्त कर वडे ही आर्डम्बर के साथ मातापिताने थावचा पुत्र कुंमर कि माफीक मोहत्सव कर भगवान के समिप दीक्षा दीरादी । निषेदमुनि सामायिकादि इग्यारा अंगका ज्ञानाभ्यास कर पुर्ण नौ वर्ष दीक्षा पाल अन्तिम आलोचना पुर्वक इकवीस दिनका अनसनकर समाधि सहीत कालकर सर्वार्थसिद्ध नामका महावैमान तेतीस सागरोपमकि स्थितिमें देवपणे उत्पन्न हुवा |
वहां देवतावांसे आयुष्य पुर्णकर महाविदेहक्षेत्र में उत्तम जातिकुल विशुद्ध वंसमे कुंमरपणे उत्पन्न होगा भोगों से अरुची होगा केवल प्ररूपित धर्म स्वीकारकर, दीक्षा ग्रहनकर घौर तपचर्या करेगा जिस कार्यके लिये वह दीक्षाके परिसह सहन करेगा उस कार्यको साधन करलेगा अर्थात् केवलज्ञान प्राप्तकर अन्तिम श्वासोश्वास ओर इस ' संसारका त्यागकर मोक्ष पधार ' जावेगा इति प्रथम अध्ययनं समाप्तं ।
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इसी माफीक (२) अनिवहकुंमर (३) वहकुंमर (४) अगतिकुंमर (५) युक्तिकुंमर (६) दशरथकुंमर (७) दृढरथकुंमर ( ८ म हा कुंमर (९) सप्तधणुकुंमर (१०) दशधणुकुमर (११) नामकुमर ( १२ ) शतधणुकुंमर ।
यह बारहकुंमर बलदेवराजाकि रेवन्तीराणी के पुत्र है पचास पचास अन्तेवर त्याग श्री नेमिनाथ प्रभु पासे दोक्षा ले अन्तिम सर्वार्थसिद्ध वैमान गये थे वहांसे चवके महाविदेह क्षेत्र में निषेढकी माफीक सब मोक्ष जावेगा ।
इति श्री विन्हिदसासूत्रका संक्षिप्त सार समाप्तम् .