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________________ समाधि पुर्वक काल कर पांचवां ब्रह्मदेवलोकमे दश सागरोपमकि स्थितिके स्थान देवतापणे उत्पन्न हुवा। वहांसे आयुष्य पुर्ण कर इस द्वारकानगरीमें बलदेवराजाकि रेवन्ती नाम की राणीके पुत्रपणे उत्पन्न हुवा है हे वरदत्त पुर्व भवमे तप संयमका यह प्रत्यक्ष फल मीला है। वरदत्तमुनिने प्रश्न कीयाकि हे भगवान यह निषढॉमर आपके पास दीक्षा लेगा? भगवानने उत्तर दीयाकि हां यह वरदत्त मेरे पास दीक्षा लेगा । एसा सुन वरदत्त मुनि भगवानकों वन्दन नमस्कार कर आत्मध्यानमे रमनता करने लगा। अन्यदा भगवान वहांसे बिहार कर व अन्य देशमें विचरने लगे। निषेढकुंमर श्रावक होनेपर जाना है जीवाजीव पुन्य पाप आश्रव संवर निजेरा बन्ध मोक्ष तथा अधिकरणादि क्रियाके भेदोंको समझा है यावत् । श्रावक व्रतोंका निर्मल पालन करने लगा। एक समय चतुर्दशी आदि पर्व तीथीके रोज पौषदशालामे युबदु कुमारकि माफीक 'पौषदकर धर्म चितवन करतो' यह भावना व्याप्त हुइकि धन्य है जिस ग्राम नगर यावत् जहांपर नेमिनाथप्रभु विहार करते है अर्थात् उस जमीनको धन्य हे कि जहांपर भगवान चरण रखते है । एवं धन्य है जिस राजा महाराजा सेठ सेनापतिकों की जो भगवानके समिप दीक्षा लेते है। धन्य है जो भगवानके समीप श्रावक व्रत धारण करते है। धन्य है जो भगवानकि देशना श्रवण करते है । अगर भगवान यहांपर पधार जावे तों में भगवानके पास दीक्षा ग्रहन करू एमा विचार रात्रीमें हुवाथा। . सूर्योदय होते ही भगवान पधारणे कि वधाइ आगइ, राजा प्रजा और निषेढकुंमर भगवानकों वन्दन करनेको गया. भगवा.
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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