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॥ अथश्री ॥
पुप्फचूलिया सूत्रका संक्षिप्त सार.
( दश अध्ययन )
( १ ) प्रथम अध्ययन । श्री वीरप्रमु अपने शिष्य मंण्डलके . परिवार से एक समय राजग्रह नगरके गुणशीलोद्यानमें पधारे. च्यार जातिके देवता, विद्याधर, राजा श्रेणक और नगर निवासी लोक भगवानकों वन्दन करनेको आये ।
उस समय सौधर्मकल्पके, श्रीवतंस वैमानमें च्यार हजार सामानिक देव, सोलाहजार आत्म रक्षक देव, च्यार महत्तरिक देवीयों और भी स्वत्रैमानवासी देवदेवीयोंके अन्दर गीतग्यान Treatदि देव संबन्धी भोग भोगवती श्रीनामकि देवी अवधिज्ञान से भगवानकों देख यावत् बहु पुत्तीयादेवीकि माफीक भगवानकों वन्दन करनेको गइ बतीस प्रकारका नाटककर अपने स्थानपर गमन किया।
गौतमस्वामिने उस श्रीदेवीका पूर्वभव पुच्छा |
भगवान ने फरमाया । कि इसी राजग्रह नगरके अन्दर जयशत्रुराजा राज करता था उस समयकि वात है कि इस नगरीमे वडाही धनाढ्य और नगर मे प्रतिष्टत एक सुदर्शन नामका गाथापति निवास करता था उसके प्राया नामकि भार्या थी और दम्पतिसे उत्पन्न हुइ भूतानामकि पुत्री थी वह पुत्री केसी थी के युहोनेपर भी वृद्धवय सादश जिस्का शरीर झंझरसा दीखाई देता